सुनामी न्यूज । क्या हुआ तेरा दबदबा! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)


थैंक यू मोदी जी। आपने देश को एक बड़ी मुसीबत से, बल्कि राष्ट्र विरोधी षडयंत्र से बचा लिया। एक और अवार्ड वापसी गैंग के हमले से बचा लिया। अब बोलें एक और अवार्ड वापसी का षडयंत्र रचाने वाले। साक्षी मल्लिक के कुश्ती त्याग के बाद, चलो बजरंग पूनिया की पद्मश्री अवार्ड की वापसी हो गयी। चलो पूनिया की अवार्ड वापसी के बाद भी, वीरेंद्र सिंह यादव उर्फ गूंगा पहलवान का पद्मश्री अवार्ड वापसी का एलान आ गया। मगर उसके आगे? अब दिखाए कोई अवार्ड वापस कर के? वैसे तो पहले भी अवार्ड वापस करने वाले कोई बहुत निकलने वाले नहीं थे। किसी करोड़-टकिया खिलाड़ी, किसी करोड़-टकिया सितारे ने अपना मुंह तक खोला था? फिर अवार्ड वापसी की लाइनें कहां से लग जातीं। फिर भी मोदी जी ने अब तो ऐसा पक्का इंतजाम किया है कि और अवार्ड वापस करने वाले आगे आना तो दूर, जो एवार्ड वापसी का एलान कर चुके थे, उनके एवार्ड वापसी ही वापस लेने की भी नौबत आ सकती है। मोदी जी ने नये-नये चुने गए कुश्ती संघ को ही सस्पेंड करा दिया -- न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। न रहेगा भारतीय कुश्ती संघ और न रहेगा ब्रजभूषण शरण सिंह का दबदबा!

बस इसमें आंदोलन करने वाले पहलवानों की जीत और मोदी जी की हार खोजने की कोशिश कोई नहीं करे। किसान आंदोलन की तरह, पहलवान आंदोलन की भी आखिरकार जीत हुई, मोदी जी की सरकार को लंबे संघर्ष के सामने आखिरकार झुकना पड़ा, ऐसा समझने की गलती कोई नहीं करे। किसान आंदोलन की भी कैसी जीत हुई, इसका पता तो इसी से चल जाता है कि किसान फिर-फिर आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं -- सरकार ने वादे पूरे नहीं किए! पहलवानों की जीत कौन जाने, इससे भी अल्पजीवी हो। किसानों ने तो फिर भी कम-से-कम तीन कानून तो वापस करा लिए थे, पहलवान तो नये निर्वाचित कुश्ती संघ के नाम पर बृजभूषण शरण सिंह की खड़ाऊं के राज की बहाली का सस्पेंशन ही हासिल कर पाए हैं। दबदबा, अभी भी सिर्फ सस्पेंड हुआ है। जो दबदबा, चुनाव के बाद भी बना रह सकता है, सस्पेंशन के बाद भी बना नहीं रहेगा, इसकी मोदी जी के सिवा और कौन गारंटी दे सकता है। और गारंटी देने की छोड़ो, मोदी जी ने एक शब्द तक नहीं बोला है, साल भर हो गया, पर पहलवानों के मामले में मुंह तक नहीं खोला है।

फिर भी कुछ तो हुआ है। जो कहते थे कि दबदबा है और रहेगा, उनका दबदबा, फिलहाल दब-दबा गया लगता है। लाजिमी सी बात है कि दबदबों की भीड़ में, एक दबदबा सब पर भारी पड़ा है -- मोदी जी का दबदबा। ब्रजभूषण शरण सिंह से यहीं गलती हो गयी। दबदबे के एलान वाले पोस्टर पर अपनी तस्वीर तो लगायी, पर मोदी जी की उससे बड़ी तस्वीर लगाना भूल गए। दबदबे का एलान, वह भी मोदी जी के आशीर्वाद के बिना! अब खोजते फिर रहे होंगे, महिला पहलवानों की हाय के नीचे कहां दब गया दबदबा!

एक बार फिर साबित हुआ कि देश बल्कि दुनिया भर में दबदबा तो एक ही है -- मोदी जी का दबदबा है। और किसी का दबदबा नहीं है, बृजभूषण शरण सिंह का भी नहीं। और पहलवानों वगैरह का तो किसी भी तरह नहीं। देखा नहीं, कैसे मोदी जी ने किसानों की भी राकेश टिकैत के आंसू निकलवाने के बाद ही सुनी थी और पहलवानों की भी साक्षी मल्लिक के आंसू निकलवाने और कुश्ती छुड़वाने के बाद ही। आंसुओं की सुनवाई भले ही हो जाए, पर दबदबा तो मोदी जी का ही है और रहेगा।               

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)*
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